ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी: एक विराट व्यक्तित्व
पुण्यदर्शन अनवरत् परिश्रमी, दूरदर्शी, समत्वयोगी ब्रह्मलीन प्रात: स्मरणीय श्री देवेन्द्रस्वरूप ब्रह्मचारी जी महाराज के अत्यन्त कृपापात्र शिष्य परम पूज्य कर्मयोगी संत श्री ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी जी कर्तव्यनिष्ठा, स्नेह और आत्मीयता की प्रतिमूर्ति हैं। उनकी सेवाभावना, परोपकार परायणता, कार्यकुशलता तथा समभावना से प्रभावित होकर परमपूज्य गुरुदेव ने अपनी समस्त सेवा संस्थानों का गुरुतर दायित्व एतादृश विशिष्ट व्यक्तित्व को सौंपा है। संस्थान का सफलतम् संचालन आपके द्वारा किया जा रहा है। समस्त जयराम संस्थायें निरन्तर जनसेवा, समाजसेवा, गौसेवा, निर्धनसेवा, अनाथ बाल, वृद्ध सेवा तथा सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र सेवा में समर्पित हैं। महान् व्यक्तित्व के स्वामी श्री ब्रह्मचारी जी का जन्म 29 मार्च 1956 को ब्राह्मण परिवार में हुआ । वे बाल्यकाल से ही अत्यन्त तेजस्वी एवं ओजस्वी प्रकृति के रहे हैं। आपकी बचपन से जनसेवा , धर्मसेवा ,समाजसेवा एवं राष्ट्र सेवा में गहरी अभिरुचि रही है। विद्यार्थी जीवन से ही ब्रह्मचारी जी सेवा कार्य में सक्रिय हो गये। आपने अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त किया है एवं छात्रों की समस्याओं और उनके हित को लेकर छात्र राजनीति में सक्रिय सहभागिता निभाई है। जनसेवा, धर्मसेवा, एवं राष्ट्रसेवा के प्रति समर्पित ब्रह्मचारी जी ‘‘सभी मेरे हैं, मैं सभी का हूँ’’ के इस सूत्र को अपनाकर प्राणपण से समाज सेवा का कार्य कर रहे हैं। श्री ब्रह्मचारी जी सफल राजनेता, कुशल प्रशासक, दूरदर्शी चिन्तक, ओजस्वी वक्ता और एक विशिष्ट जन सेवक के रूप में प्रतिष्ठत हैं। आपके हृदय में सबके लिये स्नेह एवं सम्मान का भाव है। ऊंच-नीच, जाति-पांति, छोटी-बड़ी जैसी संकुचित विचारधारा से आपका व्यक्तित्व सर्वथा अलग है। आपके विराट व्यक्तित्व के सम्पर्क में जो भी आया, वह आपके सौहार्द एवं सहयोग का कायल बन गया।
श्री ब्रह्मचारी जी उत्तरांचल राज्य के पृथक निर्माण की संकल्पना के साथ-साथ हरिद्वार तथा प्रदेश के विकास के लिये निरन्तर प्रयत्नशील रहे हैं। उन्होंने उत्तरांचल के मान और सम्मान के संकल्प को लेकर विभिन्न मंचों से संस्कृत अकादमी तथा संस्कृत विश्वविद्यालय की आवाज को मुखर करते हुये पूर्व मुख्यमन्त्री माननीय पं- नारायण दत्त तिवारी जी से व्यक्तिगत् प्रयास कर हरिद्वार में संस्कृत अकादमी एवं संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना करायी। इनके अथक् परिश्रम ओर सहयोग से स्थापित यह विश्वविद्यालय सतत संस्कृत की सेवा कर रहा है। आज यहाँ की पावन धरती इसके निर्माण से धन्य हो गयी है। ब्रह्मचारी जी शिक्षा की ज्योति को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उनके द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में कई सराहनीय कार्य किये जा रहे हैं। ऋषिकेश स्थित श्री देवेन्द्रस्वरूप ब्रह्मचारी इन्टरनैशनल पब्लिक स्कूल की स्थापना कर, क्षेत्र के बच्चों को बेहतर शिक्षा का अवसर प्रदान कर रहे हैं। इस प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान में करीब 2000 विद्यार्थी आधुनिक सुविधा से युक्त शिक्षा प्राप्त करके अपनी जिन्दगी संवार रहे हैं। इस शिक्षण संस्थान से सैकड़ों बेरोजगार नवयुवकों को आजीविका का एक महत्वपूर्ण अवसर प्राप्त हुआ है।
श्री जयराम आश्रम ऋषिकेश में संचालित संस्कृत महाविद्यालय में गढ़वाल क्षेत्र के लगभग 300 विद्यार्थियों को नि:शुल्क आवास, भोजन आदि की सुविधा प्रदान की जा रही है। इसी महाविद्यालय में योग विभाग का भी संचालन किया जा रहा है, जिसमें करीब 100 विद्यार्थी अध्यनरत् हैं।
आश्रम के द्वारा धर्म एवं संस्कृति से जुड़े हुये अन्य अनके कार्यक्रमों का भी संचालन किया जाता है। इस कार्यक्रम में प्रत्येक वर्ष सैकड़ों विकलांग बच्चों को विभिन्न सुविधायें दी जा रही हैं। जिनमें निर्धन छात्र छात्राओं को छात्रवृत्ति, धमार्थ चिकित्सा शिविर, नेत्र चिकित्सा शिविर आदि का आयोजन कर हरिद्वार एवं ऋषिकेश सहित समस्त क्षेत्रीय जनता की सेवा हो रही है।
राजनीति में ब्रह्मचारी जी की अभिरुचि छात्रावस्थ से ही रही है। इन्होंने राजनीति को समाज सेवा का एक महत्वपूर्ण माध्यम माना है। इनकी राजनैतिक प्रतिभा प्रखर होने के कारण ये काफी लोकप्रिय रहे हैं। कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में आपने जनपद स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक कई चुनौतीपूर्ण कार्यों में सक्रिय नेतृत्व किया है। आपका देश के जाने माने वरिष्ठतम राजनीतिज्ञों के साथ मधुर सम्बन्ध है। आप राजनीति में रहते हुये कभी अपने संतभाव का अतिक्रमण नहीं किया, अपितु आपके संतभाव से राजनीति को एक आदर्श मिला है। ब्रह्मचारी जी का राजनैतिक उद्बोधन अत्यंत तेजस्वी और प्रभावोत्पादक है। आपकी आवाज अकर्मण्य व्यक्तियों के लिये संजीवनी का कार्य करती है, कर्तव्यनिष्ठा और अधिकार से विमुख व्यक्तियों के लिये जागरण का कार्य करती है।
आप हतोत्साहित व्यक्तियों में उत्साह और उमंग की तरंग भर देते हैं। ब्रह्मचारी जी के उपदेश में जीवन परिवर्तित कर देने वाली वह जीवनी शक्ति विद्यमान है, जो लोगों के जीवन में एक नया सवेरा ला देती है। आपकी आवाज में वह अद्भुत शक्ति है, जो अंगुलीमाल को परिवर्तित करने के लिये महात्मा बुद्ध के उपदेश में थी।
विशेष- 11अगस्त 2002 को उत्तरांचल के विकास में महत्वपूर्ण योगदान एवं समाज सेवा के लिये आपको देहरादून में महामहिम तत्कालीन राज्यपाल श्री सुरजीत सिंह बरानाला जी द्वारा ‘‘उत्तरांचल रत्न’’ से पुरस्कृत किया गया।
उपलब्धियाँ-
दिसम्बर 2002 में उत्तरांचल संस्कृत अकादमी के उपाध्यक्ष नियुक्त हुए। आपके नेतृत्व में अकादमी का एक विशाल भव्य भवन निर्मित किया गया, जो देश की किसी भी अकादमी के भवनों में सर्वश्रेष्ठ है।
अकादमी में पाण्डुलिपियों की शोध परियोजना का कार्य प्रारम्भ किया गया, जो भारतीय विलुप्त ज्ञान के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। आपको 08 जुलाई 2005 को उत्तरांचल संस्कृत विश्वविद्यालय का प्रथम कुलपति नियुक्त किया गया।
हरिद्वार की पवित्र भूमि पर धर्म एवं उद्योग को जोड़ते हुये सिडकुल की स्थापना करवाने में आपकी विशेष भूमिका रही है साथ ही ब्रह्मचारी जी ने हरिद्वार में किसानों, मजदूरों को अर्थिक दृष्टि से अधिकाधिक लाभ प्राप्त करवाने में सर्वश्रेष्ठ भूमिका का निर्वहन किया है।
माननीय ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी जी के कार्यसम्पादन का वैशिष्ट्य कुछ इस प्रकार है कि आप आरम्भ कार्य को शीघ्र सम्पन्न करने का उत्साह रखते हैं। विलम्ब एवं दीर्घसूत्री कार्यपद्धति आपको कतई स्वीकार्य नहीं है। आपने अपने जीवन में काल करे सो आज कर आज करे सो अब इस महात्मा कबीरदासीय कार्यशैली को शत्-प्रतिशत अर्थों में आत्मसात् किया है। आपके इसी कार्यपद्धति का परिणाम है कि आपका कार्य कभी विलम्बित नहीं होता है। इतना ही नहीं ब्रह्मचारी जी की एक अनन्य महत्वपूर्ण विशेषता यह भी है कि इनके द्वारा जो भी कार्य प्रारम्भ किया जाता है उसकी पूर्णता सुनिश्चित होती है अपूर्ण कार्य आपके लिये सर्वथा असह्य है। किसी भी कार्य के उचित परिणाम आने तक कार्य को जारी रखना आपकी निजता में है। विघ्नों के भय से घबराकर किसी कर्म को आधा-अधूरा छोड़ना आपके व्यक्तित्व में नहीं है। आपके कार्य संस्कृति की विवेचना महाराज भर्तृहरि के अधोलिखित नीतिषतकीय श्लोक के उत्तरार्ध की दो पंक्तियों द्वारा सर्वश्रेष्ठ ढ़ंग से की जा सकती है-
प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचै:,
प्रारभ्य विघ्नविहता विरमन्ति मध्या:।
विघ्नैर्मुहुर्मुहुरपि प्रतिहन्यमाने,
प्रारभ्य चोत्तमजना: न परित्यजन्ति।।
पूज्य ब्रह्मचारी जी अपने जीवन मे सर्वोच्च स्थान अपने गुरु जी का मानते हैं। आपका कथन है कि गुरु की कृपा से ही आप ऐहिक एवं आध्यात्मिक उन्नति में प्रवृत्त हुये हैं। जैसे भगवान् रामकृष्ण परमहंस जी आचार्य नरेन्द्र के अन्तर्निहित असीम ज्ञान एवं अदम्य उत्साह को सूक्ष्म दृष्टि से देखकर नरेन्द्र को भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिये स्वामी विवेकानन्द बनाने का महान् कार्य किया ठीक उसी प्रकार आपके गुरु जी ने आपका असीम उत्साह, आकर्षक व्यक्तित्व, सुन्दर वाक्चातुर्य एवं आपके अध्यात्मभाव को देखकर आपके बलिष्ठ कन्धों में संस्कृत की सेवा, संस्कारों की रक्षा एवं अपनी विशाल आश्रमीय परम्परा की सुरक्षा का महान् दायित्व सौंपा है। आपके जीवन में गुरुकृपा का विशिष्ट स्थान है बिनु गुरु भवनिधि तरै न कोई। जो विरंचि शंकर सम होई। इस रामचरित मानसीय पंक्ति का तथा कबिरा गुरु के रूठते हरि नहि होत सहाय इस महात्मा कबीर दासजी की पंक्ति का प्रतिपल स्मरण आपके जीवन में देखने को मिलता है। ब्रह्मचारी जी के मन में संस्कृत के प्रति अनुराग भी पूज्य गुरु जी द्वारा ही प्राप्त हुआ है। गुरु का ही आदेश मानकर आपने संस्कृत की सेवा, गो की सेवा तथा अतिथि की सेवा के लिए जीवन समपर्ण किया है। गुरु के संकल्पित कार्य की सिद्धि के लिये आपने अपने समग्र जीवन को समर्पित किया है।
आपका स्वभाव अत्यन्त सरल सहृदय एवं उदार है। आपका सम्पूर्ण जीवन दूसरों की सेवा में लगा हुआ है। आपके विशाल व्यक्तित्व एवं शक्ति सम्पन्न गंभीरवाणी से लोग सहसा संकोच करते हैं ऐसा लगता है कि आपका स्वभाव थोड़ा कड़क है लेकिन वस्तुत: आपका स्वभाव ठीक इसका विलोम है। आप अत्यन्त सहृदयी एवं सरलचित्त के व्यक्ति हैं कई बार मैंने आपको पहले कठोर लेकिन बाद में अत्यन्त द्रवित होते हुये देखा है, लोगों का दु:ख आपसे देखा नहीं जाता आपके प्रत्येक कार्य मे जनसेवा एवं समाज सेवा का सुख समाहित है। जब भी आप कठोर होते हैं या क्रोधित होते हैं। तो उसका कारण कोई दुर्भाव नहीं होता अपितु उसमें लोगों के निर्माण की भूमिका सन्निहित होती है। संस्कृत के किसी सुभाषितकार की रचना आपके स्वभाव को शतप्रतिशत अर्थों में परिभाषित करती है-
नारिकेल समाकारा दृष्यन्ते हि साधव:।
अन्ये बदरिकाकारा बहिरेव मनोहरा:।।
ब्रह्मचारी जी की बुद्धि अत्यन्त प्रखर एवं चरित्र स्फटिक मणि की तरह अत्यन्त निर्मल है आपका वाह्य परिधान जितना स्वच्छ एवं विमल है उतना ही आपका मन भी पवित्र एवं अमल है। आप जो कुछ निर्णय करते हैं बहुत सोच समझकर और फिर उसका पालन करने के लिय भीष्म की तरह अडिग बन जाते हैं। आपका संकल्प अत्यन्त दृढ़ होता है उसमें परिवर्तन एवं संशोधन का कोई विकल्प नहीं होता आपकी विचारदृढ़ता निम्नांकित पंक्तियों का प्रतिपद अनुकरण करती है-
चन्द्र टरै सूरज टरै, टरै जगत् व्यवहार।
पै दृढ़ श्री हरिश्चन्द्र का टरै न सत्यविचार।।
ब्रह्मचारी जी लक्ष्मी और सरस्वती के समान रूप से कृपा पात्र हैं, ऐसे सौभाग्यशाली व्यक्ति कम हुआ करते हैं किन्तु आपको इस बात का किंचिन्मात्र गर्व नहीं है आप गुणों और गुणियों के सच्चे पारखी हैं आप अपने इसी स्वभाव के कारण समाज में पूज्यनीय एवं वन्दनीय हैं।
महाराज श्री का सम्पूर्ण जीवन समाज सेवा में व्यतीत हो रहा है आप विभिन्न धार्मिक नगरों में बड़े-बड़े आश्रमों एवं शिक्षण संस्थानों का विधिवत् संचालन कर रहे हैं, जहाँ हजारों तीर्थयत्री यात्रा के दौरान निवास एवं प्रसाद प्राप्त करते हैं कई स्थानों में गोशाला का भी सफल संचालन हो रहा है। कई नगरों में आप द्वारा अन्नक्षेत्र भी चलाया जा रहा है। आपकी संस्था ‘‘जयराम आश्रम’’ द्वारा सैकड़ों की संख्या में गरीब कन्याओं की शिक्षा एवं विवाह का भी आयोजन होता है कई स्थानों में आपके औषधालय भी संचालित हो रहे हैं जहाँ नि:शुल्क चिकित्सा प्रदान की जाती है।
कुम्भ नगरी हरिद्वार -ऋषिकेश में संत सेवा, संस्कृति सेवा एवं शिक्षा सेवा के लिए संकल्पबद्ध ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी जी के निर्देशन में मानव कल्याणार्थ सतत् संचालित संस्थाओं का सामान्य परिचय-